आरती कुंजबिहारी की लिरिक्स

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आओ बिना समय गवाए हम देखते है आरती कुंजबिहारी की लिरिक्स

~ श्री कृष्ण आरती ~

आरती कुंजबिहारी की ,
श्रीगिरिधर कृष्ण मुरारि की ॥ 1


गले में वैजन्तीमाला ,
बजावे मुरली मधुर बाला 
श्रवण में कुण्डल झलकाला ,
नन्द के  आनन्द नन्दलाला |
श्रीकन्द मोहन ब्रिजचन्द्र ,
राधिकारमण विहारी की ,
आरती कुंजबिहारी की ,
श्रीगिरिधर कृष्ण मुरारि की ॥,2


गगन सम अंग कान्ति काली,
राधिका चमक रही आली 
लतन में ठाढे बनमाली ,
भ्रमर सी अलक कस्तूरी |
तिलक चन्द्र सी झलक 
ललित छबि श्यामाप्यारी की,
आरती कुंजबिहारी की
श्रीगिरिधर कृष्ण मुरारि की ॥ ३


 जहाँ से प्रगट भई गङ्गा,
सकलमलहारिणी श्रीगङ्गा
 स्मरण से होत मोह भङ्गा
वसि शिव शीश जटा के बीच,
हरे अघ कीच 
चरण छबि श्री बनवारि की ,
आरती कुंजबिहारी की
श्रीगिरिधर कृष्ण मुरारि की ॥4


कनकमय मोरमुकुट बिलसे ,
देवता दर्शन को तरसे 
गगन सो सुमन राशी ,
बरसे बजे मुर्छग मधुर मिरदंग ग्वालिनी ,
अतुल रति गोपकुमारि की 
आरती कुंजबिहारी की
श्रीगिरिधर कृष्ण मुरारि की ॥ 5


चमकती उज्ज्वल तट रेणु ,
बज रही वृन्दावन वेणु 
चहँ दिशि गोपी ग्वाल धेनु, 
हँसत मृद्मन्द चाँदनी चन्द्र कटत भवफन्द 
टेर सुनु दीनदुखारि की,
आरती कुंजबिहारी की
श्रीगिरिधर कृष्ण मुरारि की संग ॥6


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